मासिक वेतन तो पूर्णमाशी का चाँद है , जो एक दिन दिखाई देता है और घटते घटते लुप्त हो जाता है!
ऊपरी आये बहता हुआ श्रोत है जिससे सदैव प्यास बुझिती है!
मासिक वेतन मनुष्य देता है, इसीसे उसमे व्रद्धि नहीं होती!
ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है, इसीसे बरकत होती है!
-प्रेमचंद